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पृथ्वी की गतियाँ


पृथ्वी की गतियाँ 

पृथ्वी अपने अक्ष पर साढे 23 डीग्री झुकी हुई है।
पृथ्वी अपने कक्षीय समतल पर साढे 66 डीग्री का कोण बनाती है।

पृथ्वी गतिशील है, इसकी दो गतियाँ है।

1. दैनिक या घूर्णन गति- 

पृथ्वी 23 घण्टों 56 मिनट व 4 सैकेड में अपने अक्ष पर घूमती है, यह गति पश्चिम से पूर्व दिशा में होती है जिसके कारण सूर्य पूर्व से उदय एवं पश्चिम में अस्त होता है।

पृथ्वी के पश्चिम से पूर्व दिशा में घूर्णन के कारण ही सभी नक्षत्रों एवं तारों के भ्रमण की दिशा पूर्व से पश्चिम दिशा में रहती है। पृथ्वी की इस गति के कारण रेखीय क्षेत्र में अधिक उभार एवं ध्रुवों पर चपटापन पैदा हुआ है। 

इससे दिन - रात बनते हैं। 

इस गति के कारण हवाओं और धाराओं की दिशा में बदलाव भी आता है।

 दैनिक गति या परिभ्रमण की भूमध्य रेखा पर सर्वाधिक गति (1600 किमी. प्रति घण्टा) एवं उत्तर एवं दक्षिण अक्षांशों पर (दोनों गोलार्द्धों ) में गति कम जाती है (1,120 किमी. प्रति घण्टा) तथा ध्रुवों पर जाकर लगभग शून्य हो जाती है।

पृथ्वी का अक्ष पृथ्वी की कक्षा पथ पर समकोण न बना कर 23.30° का झुकाव सूर्य की परिक्रमा के समय एक ही दिशा में बना रहता है। पृथ्वी के इस झुकाव के फलस्वरूप उत्तर व दक्षिण ध्रुव बारी - बारी से सूर्य के सामने आते हैं, जिससे दोनों गोलाद्धों में अलग - अलग ऋतुओं का आनन्द प्राप्त होता है। अगर यह अक्षीय झुकाव नहीं होता तो पृथ्वी पर रात - दिन बराबर होते तथा विभिन्न ऋतुओं का बनना भी असम्भव होता हैं।

2. परिक्रमण गति

पृथ्वी की दूसरी महत्वपूर्ण गति सूर्य के चारों ओर पश्चिम से पूर्व दिशा में अपनी कक्षा में वार्षिक यात्रा करना है। जो 365 दिन 5 घंटे 48 मिनट व 46 सैकण्ड  में 29.6 किमी. प्रति सेकेण्ड की गति से सम्पन्न होती है।

ऋतुओं मे परिवर्तन

पृथ्वी के परिक्रमण में चार मुख्य अवस्थाएँ आती है एवं इन अवस्थाओं मैं ऋतु परिवर्तन होते हैं।

उत्तरी आयनांत 

21 जून की स्थिति इस समय सूर्य कर्क रेखा पर लम्बवत् चमकता है। इस स्थिति को कर्क संक्रांति कहते हैं।  21 जून को उत्तरी गोलार्द्ध में दिन की लंबाई सबसे अधिक रहती है, तो वहीं दक्षिणी गोलार्द्ध मे सबसे छोटा दिन होता है।

दक्षिणी आयनांत

22 दिसम्बर की स्थिति इस समय सूर्य मकर रेखा पर लम्बवत् चमकता है। इस स्थिति को मकर सक्रांति कहते हैं। इस समय दक्षिणी गोलार्द्ध में दिन की अवधि लम्बी तथा रात छोटी होती है। 

बसंत विषुव एवं शरद विषुव

21 मार्च व 23 सितम्बर की स्थितियाँ- इन दोनों स्थितियों में सूर्य विषुवत रेखा पर लम्बवत् चमकता है। अत: इस समय समस्त अक्षांश रेखा का आधा भाग सूर्य का प्रकाश प्राप्त करता है तथा सर्वत्र दिन व रात की अवधि बराबर होती है। इस समय दिन व रात की अवधि के बराबर रहने एवं ऋतु की समानता के कारण इन दोनों स्थितियों को 'विषुव' अथवा 'सम रात-दिन' कहा जाता है। 21 मार्च की स्थिति को 'बसंत विषुव'  एवं 23 सितम्बर वाली स्थिति को 'शरद विषुव' कहा जाता है।

अपसौर व उपसौर

पृथ्वी की कक्षा वृत्ताकार न होकर अण्डाकार है जिससे सूर्य और पृथ्वी की दूरी परिक्रमण के दौरान बदलती रहती है पृथ्वी और सूर्य के मध्य औसत दूरी 150 मिलियन किमी. है। जब पृथ्वी सूर्य से सर्वाधिक दूरी (152 मिलियन किमी.) पर होती है इसे अपसौर कहते है।

उपसौर- जब पृथ्वी और सूर्य के मध्य दूरी सबसे कम (147 मिलियन किमी) पर हो तो इसे उपसौर कहा जाता है। 

सूर्यग्रहण व चंद्रग्रहण 

सूर्यग्रहण- जब चंद्रमा, सूर्य एवं पृथ्वी के बीच आ जाता है तो चन्द्रमा के कारण सूर्य अंशतः या पूर्णतः ढक जाता है। इससे कुछ क्षण के लिए सूर्य ओझल हो जाता है, इस स्थिति को सूर्यग्रहण कहते हैं वर्ष में अधिकतम 7 बार सूर्यग्रहण की स्थिति  है।

चन्द्रग्रहण- जब पृथ्वी, सूर्य एवं चन्द्रमा के बीच आ जाती है। तो चन्द्रमा पर गिरने वाली सूर्य की किरणों को पृथ्वी रोक लेती है और कुछ क्षण के लिए चन्द्रमा ओझल हो जाता है। ऐसी स्थिति को 'चन्द्रग्रहण' कहते हैं। चन्द्रग्रहण केवल पूर्णिमा को होता है परन्तु प्रत्येक पूर्णिमा को नहीं होता, वर्ष में अधिकतम 7 बार चंद्रग्रहण की स्थिति बनती है।

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